Expressing it my way

There should be no particular time, moment or event to express your love and respect for someone you admire and idolize.


Made a small attempt here just to express my unconditional love for this great athlete and more importantly, an equally wonderful human being- the one and the only, “Roger ‘peRFect’ Federer”.

‘दर्द – ए- दिल्ली ‘

 

‘दर्द-ए-दिल्ली’

( सीधा मेरे दिल फेफड़ों से )

 

दिल्ली में छाया हुआ यह प्रदूषित जानलेवा कोहरा लोगों को त्रस्त कर उड़ा रहा है उनकी खिल्ली

और एक आम दिल्ली वाले के दिल की पीड़ा को बयान करने का ज़ऱिया है यह ‘दर्द-ए-दिल्ली’ |

 

किसको पता था कि मिलेगा हमें दीपावली का ऐसा उपहार,

कि राष्ट्रीय राजधानी का बच्चा-बच्चा हो जायेगा बीमार और लाचार |

जीना दुश्वार कर ही चुकी थी केंद्र-राज्य-राज्यपाल की जंग,

कूड़ा बनी दिल्ली के निवासियों की अब तो सांसें भी हो गयीं भंग |

महामारी मचाकर जब कूच कर चले थे चिकनगुनिया साम्राज्य के कुलभूषण,

तभी आतंक मचाने को प्रकट हुआ एक दैत्य, नाम है जिसका ‘प्रदूषण’ |

वैसे तो इसके गुंडे कई दशकों से पैर पसार कर हैं बैठे,

पर इस बार ये जानलेवा तत्व कुछ अलग ही तरह से हैं ऐंठे |

दिवाली पर मचाकर पटाखों का धुआं, खुश तो बहुत हुए होगे तुम,

अब हालात ऐसे हैं कि अपना अस्तित्व होता दिखाई पड़ता है गुम |

उत्तरी राज्यों में कई सौ किलोमीटर तक लगाई गयी भूसे में आग,

सरकारों का तो क्या ही कहें पर किसान कब से हुए इतने बददिमाग |

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वातानुकूलित कमरों, बैठकों और कागज़ों में तो कम हुआ कूड़ा और प्रदूषण,

पर दिल्लीवासियों के फेफड़ों में आज भी नाच रहे हैं ये बनकर खर-दूषण |

बस चले मेरा जो तो पी.एम. को कर पिन्जरे में कैद, दिखा दूं उसे उसकी औकात,

अरे अरे ! प्रधानमन्त्री नहीं, मैं तो पी.एम.2.5 और पी.एम.10 की कर रहा हूँ बात |

कहते हैं कि गत सत्रह वर्षों में नहीं देखी गयी कभी ऐसी धुंध,

अजी तब कहाँ हुआ करता था राजनैतिक कलह का यह अग्निकुंड |

सचिवालय, राजनिवास और रेस-कोर्स के बीच दिल्ली जैसे गयी है थम,

वादों का तो अता-पता नहीं पर घोट कर अवश्य रहेंगे ये हमारा दम |

आरोप-प्रत्यारोप और जुमले सुनने की तो नहीं थी हमारी दरकार,

घरों में भी घुस आया है यह दैत्य, अब तो कुछ कीजिये सरकार |

बड़े-बूढ़े क्या, यह तो कर रहा है नन्हे-मुन्हों पर भी प्रहार,

कोख में पल रही जानों में भी अब तो आने लगे विकार |

बिना नकाब वाले नकाबपोशों से तो मैं पहले हो जाता था वाकिफ़,

हाँ वही जो जाति, नस्ल, धर्म के आधार पर रचते थे राजनैतिक साज़िश |

पर अब तो नकाब लगाने को मजबूर हुआ है हर इंसान,

दूभर हो जायेगा पहचानना कौन है साधू, कौन शैतान |

सरकार पर कर दोषारोपण खुद को हम बताते हैं पाक साफ़,

पर कुदरत को धोखा देना है असम्भव, वह नहीं करती किसी को माफ़ |

पटाखे, आग, वाहन, कूड़ा आखिर किसने किये ये वार,

मैं – आप – सरकार हम सब हैं बराबर के भागीदार |

क्यों नहीं समझते हम लोग, राजनीति में नहीं बनाने चाहियें नायक,

जो करें हमारे जीवन से खिलवाड़, वे हैं नायक रुपी खलनायक |

प्रदूषण के मुद्दे पर लड़कर क्या कभी मिली किसी दल को ख्याति ?

इनका तो आज़माया हुआ ब्रह्मास्त्र है नस्ल, धर्म और जाति |

अब स्कूल होंगे बंद, रुकेंगे निर्माण कार्य, आएँगी नई बसें, सुध लेगा हर विभाग,

पर जिन्हें मिले तोहफे में दमा, तपेदिक और कर्क, कैसे बुझेगी उनके जीवन की आग ?

ऑड-ईवेन और स्वच्छ भारत की फुंहार बुझाएगी जले हुए खेत ,

पर अब पछताए होत क्या जब लूट गया ‘प्रदूषण’ नामक डकेत |

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ये विचार मेरे दिल के नहीं, हमारे फेफड़ों का है यह गुबार,

अब और लिखने की हिम्मत नहीं, सांस लेना हो रहा दुश्वार |

आलोचना आज-कल करने से भी दिल ज़ोरों से धड़कता है,

क्या कहें भईया, आज-कल देशों में बैन बहुत लगता है ||

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-मोहक चौधरी ‘सचिंत’

०६.११.२०१६